Friday, July 31, 2020

ಸೇತುಬಂಧ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮ


ದೂರದರ್ಶನ ಚಂದನ ವಾಹಿನಿಯಲ್ಲಿ ಪ್ರಸಾರವಾದ 8,9,10ನೇ ತರಗತಿ ಸೇತುಬಂಧ ಕಾರ್ಯಕ್ರಮವನ್ನು ಇಲ್ಲಿ ವೀಕ್ಷಿಸಿ

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Wednesday, July 29, 2020

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Tuesday, July 28, 2020

प्रबंध

 1. स्वच्छ भारत अभियान

संकेत बिंदु-

  • भूमिका
  • स्वच्छता अभियान की आवश्यकता
  • स्वच्छ भारत अभियान
  • अभियान की शुरुआत
  • उपसंहार

भूमिका – स्वच्छता और स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह बात हमारे ऋषि-मुनि भी भलीभाँति जानते थे। वे अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करते थे कि अन्य लोग भी अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें और स्वस्थ रहें। यह देखा गया है कि जहाँ लोग स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, वे बीमारियों से बचे रहते हैं।

स्वच्छता अभियान की आवश्यकता – बढ़ती जनसंख्या, व्यस्त दिनचर्या औ स्वच्छता के प्रति विचारों में आई उदासीनता के कारण पर्यावरण में गंदगी बढ़ती गई। साफ़-सफ़ाई का काम लोगों को निम्न स्तर का काम नज़र आने लगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं ऐसी सोच के कारण गंदगी बढ़ती गई। हर छोटी-बड़ी वस्तुओं को प्लास्टिक की थैलियों में पैक किया जाना तथा वस्तुओं के प्रयोग के उपरांत प्लास्टिक या खाली डिब्बों तथा उनके पैकेटों को इधर-उधर फेंकने से उत्पन्न कूड़ा-करकट तथा गंदगी, तथा लोगों की सोच में बदलाव के कारण इस अभियान की विशेष आवश्यकता महसूस की जाने लगी।

स्वच्छ भारत अभियान – स्वच्छता को बढ़ावा देने तथा इसके प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए समय-समय पर संदेश प्रसारित किए जाते हैं तथा अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिशा में 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का आरंभ किया गया। इसे 2019 तक चलाया जाएगा जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती होगी। इस अवसर पर अर्थात् 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री ने देशवासियों को शपथ दिलाते हुए कहा, “मैं स्वच्छता के प्रति कटिबद्ध रहूँगा और इसके लिए समय दूंगा। मैं न तो गंदगी फैलाऊँगा और न दूसरों को फैलाने दूंगा।” हमारे राष्ट्रपिता ने साफ़-सुथरे और विकसित भारत का जो सपना देखा था, उसी को साकार करने के लिए इस अभियान का शुभारंभ किया गया।

अभियान की शुरुआत – 2 अक्टूबर, 2014 को हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ लेकर इस अभियान की शुरुआत की। इस अभियान से विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, जानी-मानी हस्तियों, प्रधानाचार्य, अध्यापक, छात्र समेत लाखों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इस अभियान पर लगभग करोड़ों रुपये खर्च करने का बजट भी रखा गया। प्रधानमंत्री ने इस अभियान को राजनीति प्रेरित न कहकर देशभक्ति से प्रेरित बताया। उन्होंने राजपथ पर आयोजित एक समारोह में लोगों को शपथ दिलाई। उन्होंने सफाई कर्मियों की कॉलोनी बाल्मीकि कॉलोनी में झाडू लगाई। इसी दिन तात्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल के उसी स्कूल में झाडू लगाई, जहाँ उन्होंने पढ़ाई की थी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक भारतीय को वर्ष में एक सौ घंटे सफ़ाई को अवश्य देना चाहिए।

उपसंहार – देश को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की सख्त आवश्यकता थी और रहेगी। इसे महसूस करते हुए हमारे देश की अनेक हस्तियों ने इससे स्वयं को जोड़ लिया। ये हस्तियाँ हैं- सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी, कमल हसन, प्रियंका चोपड़ा, मृदुलासिन्हा, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की टीम तथा अन्य हस्तियाँ। हमारे राष्ट्रपिता का कहना था कि जहाँ सफ़ाई होती है, वहाँ ईश्वर का वास होता है। इस बात को ध्यान में रखकर हम प्रत्येक भारतीय को इस अभियान से जुड़ जाना चाहिए ताकि हमारा भारत ‘स्वच्छ भारत ही नहीं स्वस्थ भारत’ भी बन सके।


2. प्रदूषण के कारण और निवारण
अथवा
प्रदूषण की समस्या

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • हमारा जीवन और पर्यावरण
  • पर्यावरण प्रदूषण के कारण
  • प्रदूषण के प्रकार और परिणाम
  • प्रदूषण रोकने के उपाय
  • उपसंहार

भूमिका – मानव और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। वह अपनी आवश्यकताओं यहाँ तक कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है। मानव ने ज्यों-ज्यों स यता की ओर कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी ज़रुरतें बढ़ती गईं। इन आवश्यकतों को पूरी करने के लिए उसने प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ शुरु कर दी, जिसका दुष्परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया। आज प्रदूषण किसी स्थान विशेष की समस्या न होकर वैश्विक समस्या बन गई है।

हमारा जीवन और पर्यावरण – मानव जीवन और पर्यावरण का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। जीवधारियों का जीवन उसके पर्यावरण पर निर्भर रहता है। जीव अपने पर्यावरण में जन्म लेता है, पलता-बढ़ता है और शक्ति, सामर्थ्य एवं अन्य विशेषताएँ अर्जित करता है। इसी तरह पर्यावरण की स्वच्छता या अस्वच्छता उसमें रहने वाले जीवधारियों पर निर्भर करती है। अत: जीवन और पर्यावरण का सहअस्तित्व अत्यावश्यक है।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण – पर्यावरण प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण है-प्राकृतिक संतुलन का तेज़ी से बिगड़ते जाना। इसके मूल में है-मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियाँ। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन और दुरुपयोग करने लगा है। इससे सारा प्राकृतिक-तंत्र गड़बड़ हो गया। इससे वैश्विक ऊष्मीकरण का खतरा बढ़ गया है। अब तो प्रदूषण का हाल यह है कि शहरों में सरदी की ऋतु इतनी छोटी होती जा रही है कि यह कब आई, कब गई इसका पता ही नहीं चलता है।

प्रदूषण के प्रकार और परिणाम – हमारे पर्यावरण को बनाने में धरती, आकाश, वायु जल-पेड़-पौधों आदि का योगदान होता है। आज इनमें से लगभग हर एक प्रदूषण का शिकार बन चुका है। पर्यावरण के इन अंगों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न प्रकार माने जाते हैं, जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।

1. वायु प्रदूषण-जिस प्राणवायु के बिना जीवधारी कुछ मिनट भी जीवित नहीं रह सकते, वही सर्वाधिक विषैली एवं प्रदूषित
हो चुकी थी। इसका कारण वैज्ञानिक आविष्कार एवं बढ़ता औद्योगीकरण है। इसके अलावा धुआँ उगलते अनगिनत वाहनों में निकलने वाला जहरीला धुआँ भी वायु को विषैला बना रहा है। उसी वायु में साँस लेने से स्वाँसनली एवं फेफड़ों से संबंधित अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं जो व्यक्ति को असमय मौत के मुंह में ढकेल देती हैं।

2. जल प्रदूषण-औद्योगिक इकाइयों एवं कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन वाले पानी जब नदी-झीलों एवं विभिन्न
जल स्रोतों में मिलते हैं तो निर्मल जल जहरीला एवं प्रदूषित हो जाता है। इसे बढ़ाने में घरों एवं नालों का गंदा पानी भी एक कारक है। इसके अलावा नदियों एवं जल स्रोतों के पास स्नान करना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना, फूल-मालाएँ एवं मूर्तियाँ विसर्जित करने से जल प्रदूषित होता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ होती हैं।

3. ध्वनि प्रदूषण-सड़क पर दौड़ती गाड़ियों के हार्न की आवाजें आकाश में उड़ते विमान का शोर एवं कारखानों में मोटरों की
खटपट के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारण ऊँचा सुनने, उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ी हैं।

4. मृदा प्रदूषण-खेतों में उर्वरक एवं रसायनों का प्रयोग, फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग, औद्योगिक कचरे तथा प्लास्टिक की __ थैलियाँ जैसे हानिकारक पदार्थों के ज़मीन में मिल जाने के कारण भूमि या मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इस कारण ज़मीन की उर्वराशक्ति निरंतर घटती जा रही है।

प्रदूषण रोकने के उपाय – प्रदूषण रोकने के लिए सबसे पहले पेड़ों को कटने से बचाना चाहिए तथा अधिकाधिक पेड़ लगाने चाहिए। कल-कारखानों की चिमनियों को इतना ऊँचा उठाया जाना चाहिए कि इनकी दूषित हवा ऊपर निकल जाए। इनके कचरे को जल स्रोतों में मिलने से रोकने का भरपूर प्रबंध किया जाना चाहिए। घर के अपशिष्ट पदार्थों तथा पेड़ों की सूखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने में किया जाना चाहिए।

उपसंहार – प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी एवं जानलेवा समस्या है। इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत प्रयास के अलावा सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। आइए इसे रोकने के लिए हम सब भी अपना योगदान दें।


3. समय का महत्त्व
अथवा
समय चूकि वा पुनि पछताने

संकेत बिंदु –

  • भूमिका
  • समय सदा गतिमान
  • समय बड़ा बलवान
  • समय का पालन करती प्रकृति
  • विद्यार्थी और समय का सदुपयोग
  • उपसंहार

भूमिका – प्रकृति द्वारा मनुष्य को अनेकानेक वस्तुएँ प्रदान की गई हैं। इनमें कुछ ऐसी हैं जिनका मूल्य आँका जा सकता है और कुछ ऐसी हैं जिनके मूल्य का आँकलन नहीं किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही है-समय, जिसका न तो मूल्य आँका जा सकता है और न वापस लौटाया जा सकता है।

समय सदा गतिमान – समय निरंतर गतिमान रहता है। उसे रोका नहीं जा सकता है। समय की गतिशीलता के बारे में ही कहा गया है। Time and tide wait for none. अर्थात् समय और समुद्री ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। जो व्यक्ति समय का लाभ नहीं उठाते हैं और अवसर आने पर चूक जाते हैं, या हाथ आए अवसर का लाभ नहीं उठा पाते हैं, वे पछताते रह जाते हैं। कहा गया है कि जो व्यक्ति समय को नष्ट करते हैं, समय उन्हें नष्ट कर देता है।

समय बड़ा बलवान – समय बड़ा बलवान माना जाता है। समय के आगे आज तक किसी की नहीं चली है। बड़े-बड़े योद्धा, राजा, धनसंपन्न व्यक्तियों की भी समय के सामने नहीं चल पाई। समय ने उन्हें भी अपना शिकार बना लिया। समय के साथ-साथ पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं, फल पककर शाखाओं का साथ छोड़ जाते है, और नीचे आ गिरते हैं।

समय का पालन करती प्रकृति – समय का महत्त्व भला प्रकृति से बढ़कर और कौन समझ पाया है। तभी तो प्रकृति के सारे काम समय. पर होते हैं। सूर्य समय पर उगकर अँधेरा ही दूर नहीं करता, बल्कि धरती पर प्रकाश और ऊष्मा फैलाता है। मुरगा समय पर बाग देना नहीं भूलता है तो उचित ऋतु पाकर पौधों में नई पत्तियाँ आ जाती हैं। वसंतु ऋतु में पौधों पर फूल आ जाते हैं। छोटा पौधा जैसे ही बड़ा होता है वह फल देना नहीं भूलता है। गरमी के अंत तक बादल पानी लाकर धरती का कल्याण करना नहीं भूलते हैं, तो समय पर फ़सलें अनाज दिए बिना नहीं सूखती हैं।

महापुरुषों की सफलता का राज़ – ऋषि-मुनि रहे हों या अन्य महापुरुष अथवा सफलता के शिखर पर पहुँचे व्यक्ति, सभी की सफलता के मूल में समय का महत्त्व एवं उसके पल-पल का उपयोग करने का राज छिपा है। महात्मा गांधी, नेहरू जी, तिलक आदि ने समय के पल-पल का उपयोग किया। वैज्ञानिकों की सफलता में समय पर काम करने की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। इसी प्रकार मात्र एक मिनट के विलंब से स्टेशन पर पहुँचने वाले लोगों की ट्रेन छूट जाती है।

समय के दुरुपयोग का दुष्परिणाम – कुछ लोगों की आदत होती है कि वे व्यर्थ में समय गँवाते हैं। वे कभी आराम करने के नाम पर तो कभी मनोरंजन के नाम पर समय का दुरुपयोग करते हैं। इस प्रकार समय गँवाने वाले सुखी नहीं रह सकते हैं। कहा जाता है कि जूलियस सीजर सभा में पाँच मिनट विलंब से पहुँचा और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसी प्रकार कुछ ही मिनट की देरी से युद्ध स्थल पर विलंब से पहुंचने वाले नेपोलियन को नेल्सन के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जिसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द था ही नहीं।

विद्यार्थी और समय का सदुपयोग – विद्यार्थी जीवन, मानवजीवन के निर्माण का काल होता है। इस काल में यदि विद्यार्थी में समय के पल-पल के उपयोग की आदत एक बार पड़ जाती है तो वह आजीवन साथ रहती है। जो विद्यार्थी समय पर शय्या का त्यागकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें अच्छा ग्रेड लाने से कोई रोक नहीं सकता है।

उपसंहार – समय अमूल्य धन है। हमें भूलकर भी इस धन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इससे पहले कि और देर हो, हमें समय के सदुपयोग की आदत डाल लेनी चाहिए।

4. जनसंख्या विस्फोट
अथवा
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • भारत में जनसंख्या की स्थिति
  • जनसंख्या वृद्धि के कारण
  • जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
  • जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय
  • उपसंहार

भूमिका – एक सूक्ति है–’अति सर्वत्र वय॑ते!’ अर्थात् अति हर जगह वर्जित होती है। यह सूक्ति हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि पर पूर्णतया लागू हो रही है। हाँ, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, अब उस पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। इसमें विलंब करने का परिणाम अच्छा नहीं होगा।

भारत में जनसंख्या की स्थिति – हमारे देश की जनसंख्या में तीव्र दर से वृद्धि हुई है। आज़ादी के समय 50 करोड़ रहने वाली जनसंख्या दूने से अधिक हो चुकी है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या 120 करोड़ की संख्या पार गई थी। वर्तमान में यह बढ़ते-बढ़ते 122 करोड़ छूने लगी है। इतनी बड़ी जनसंख्या अपने आप में एक समस्या है।

जनसंख्या वृद्धि के कारण – जनसंख्या वृद्धि के कारणों के मूल में जाने से ज्ञात होता है कि इस समस्या के एक नहीं अनेक कारण हैं। इनमें अशिक्षा मुख्य है। हमारे देश के ग्रामीण अंचलों की निरक्षर जनता आज भी अशिक्षा के कारण बच्चों को भगवान की देन मानकर इस पर नियंत्रण लगाने के लिए तैयार नहीं है। इन क्षेत्रों की धार्मिकता एवं धर्मांधता के कारण जनसंख्या वृद्धि हो रही है। हिंदू धर्म में पुत्र को मोक्षदाता माना जाता है।

अपने एक मोक्षदाता को पाने के लिए वे कई-कई लड़कियाँ पैदा करते हैं और जनसंख्या वृद्धि रोकने को तैयार नहीं होते हैं। कई जातियों में व्याप्त बहुविवाह प्रथा के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है। अशिक्षित तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव एवं अज्ञानता के कारण जनसंख्या वृद्धि होती रही है। गर्भ निरोधन के साधनों की जानकारी उन तक नहीं पहुँच पाती हैं।

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ – वास्तव में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या न होकर अनेक समस्याओं की जड़ है। इसके कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह की समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। इनमें प्रमुख समस्या है-सुविधाओं का बँटवारा और कमी। देश में जितनी सुविधाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं, वे देश की जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करने में अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। सरकार इन सुविधाओं को बढ़ाने के लिए योजना बनाती है और उनमें वृद्धि करती है, जनसंख्या में उससे अधिक वृद्धि हो चुकी होती है।

अतः संसाधनों की कमी बनी रह जाती है। बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, यातायात के साधनों की भीड़, सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हैं। जनसंख्या की अधिकता के कारण ही व्यक्ति को न पेट भरने के लिए रोटी मिल रही है और न तन ढंकने के लिए वस्त्र। हर हाथ को काम मिलने की बात करना ही बेईमानी होगी। अब भूखा और बेरोज़गार शांत बैठने से रहा। वह हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे अपनाकर कार्य करता है और कानून व्यवस्था को चुनौती देता है। पर्यावरण प्रदूषण और वैश्विक ऊष्मीकरण भी जनसंख्या वृद्धि की देन है।

जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय – जनसंख्या की समस्या ने निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। सरकार कानून बनाकर उसे ईमानदारी से लागू करवाए तथा युवा वर्ग इसकी हानियों पर विचार कर स्वयं ही समझदारी दिखाएँ।

उपसंहार-जनसंख्या वृद्धि देश, समाज और विश्व सबके लिए हानिकारक है। इसे रोकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। इसके लिए आज से ही सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि कल तक तो बहुत देर हो चुकी होगी।


5. बढ़ती महँगाई-एक विकट समस्या
अथवा
महँगाई की समस्या

संकेत-बिंदु

  • भूमिका
  • महँगाई के दुष्परिणाम
  • सामाजिक समरसता के लिए घातक
  • महँगाई वृद्धि के कारण
  • महँगाई रोकने के उपाय
  • उपसंहार

भूमिका – आज देश को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है, उनमें महँगाई सर्वोपरि है। यह ऐसी समस्या है जिससे मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर सभी पीड़ित हैं। गरीब और निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए महँगाई जानलेवा बनी हुई है।

महँगाई के दुष्परिणाम – महँगाई के कारण उपयोग और उपभोग की हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगते हैं। ऐसे में जनसाधारण की मूलभूत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती हैं। न भरपेट भोजन और न शरीर ढंकने के लिए वस्त्र, आवास की समस्या की बात ही क्या करना। उसका सारा ध्यान और शक्ति प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने में ही निकल जाता है। उसे कला, संस्कृति, साहित्य, सौंदर्य बोध आदि के बारे में सोचने का समय नहीं मिल पाता है। ऐसे में व्यक्ति की स्थिति ‘साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात नर पुच्छ विषाण हीनः’ की होकर रह जाती है। ऐसा लगता है कि उसका जीवन आर्थिक समस्याओं से जूझने में ही बीत जाता है।

सामाजिक समरसता के लिए घातक – महँगाई के कारण जब समाज को रोटी मिलना कठिन हो जाता है तो वर्ग संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समाज में छीना-झपटी, लूटमार की स्थिति बन जाती है। ऐसे में सामाजिक समरसता का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाता है। इसके अलावा समाज में कानून व्यवस्था की चुनौती उत्पन्न हो जाती है।

महँगाई वृद्धि के कारण – महँगाई बढ़ाने के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है। अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत है कि जब वस्तु की माँग बढ़ती है तो उसके मूल्य में वृद्धि हो जाती है। ऐसे में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बढ़ती जनसंख्या की माँग पूरा करने के लिए जब वस्तुओं की कमी होती है तो महँगाई बढ़ने लगती है।

कुछ व्यापारियों की लोभ प्रवृत्ति भी महँगाई बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होती है। ऐसे व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं और कृत्रिम कमी दिखाकर वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देते हैं, और बाद में बढ़े दामों पर बेचते हैं।

मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा आदि के कारण जब फ़सलें नष्ट होती हैं, तो महँगाई बढ़ जाती है। इसके अलावा सरकार की कुछ नीतियों के कारण भी महँगाई बढ़ती जाती है।

महँगाई रोकने के उपाय – महँगाई वह समस्या है जिससे देश की बहुसंख्यक जनता दुखी है। ऐसे में महँगाई रोकने के लिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह जमाखोरों तथा कालाबाज़ारी करने वालों के विरुद्ध ठोस कार्यवाली करे और जमाखोरी की वस्तुओं का वितरण सार्वजनिक प्रणाली के अनुसार करे।

जिन वस्तुओं के मूल्य में अचानक उछाल आ रहा हो उनका आयात करके जनता में वितरित करवाना चाहिए तथा लोगों से धैर्य बनाए रखने की अपील करनी चाहिए। राजनीतिज्ञों को चाहिए कि वे चुनाव में खर्च को कम करें, काले धन का प्रयोग न करें। चुनाव का खर्च बढ़ने पर तथा ‘येन केन प्रकारेण’ चुनाव जीतने की लालसा के कारण वे बेतहाशा पैसा खर्च करते हैं। उन्हें इस प्रवृत्ति पर स्वयं अंकुश लगाने की ज़रूरत है।

उपसंहार – महँगाई व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। भूखा व्यक्ति अपनी जठराग्नि शांत करने के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाता है। समाज के अमीर वर्ग को उदारता एवं दयालुता का परिचय देकर दीन-हीनों की मदद कर महँगाई की मार से उन्हें बचाने के लिए आगे आना चाहिए।


6. कंप्यूटर के लाभ
अथवा
कंप्यूटर-आज की आवश्यकता

संकेत-बिंदु –

  • भूमिका
  • कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र
  • शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर
  • बैंकों में कंप्यूटर
  • विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर
  • व्यक्तिगत उपयोग
  • कंप्यूटर से हानियाँ
  • उपसंहार

भूमिका-विज्ञान ने मुनष्य को ऐसे अनेक उपकरण प्रदान किए हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। इन उपकरणों ने मानव-जीवन को नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। ये उपकरण इनते उपयोगी हैं कि वे मनुष्य की आवश्यकता बनते जा रहे हैं। इन्हीं उपकरणों में एक है-कंप्यूटर। कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कारी यंत्र है।

कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र – कंप्यूटर का आविष्कार विज्ञान के चमत्कारों में से एक है। यह ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग लगभग हर जगह किया जाता है। यह व्यक्तिगत उपयोग में लाया जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई कार्यालय हो जहाँ किसी न किसी रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। अब इसे लाना-ले जाना भी सुगम होता जा रहा है, क्योंकि इसके मॉडल में बदलाव आता जा रहा है।

शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर – आने वाले समय में शिक्षण का अधिकांश कार्य कंप्यूटर से किया जाने लगेगा। यद्यपि प्रोजेक्टर के माध्यम से आज भी वभिन्न कोसों की पढ़ाई कंप्यूटर से करवाई जा रही है तथा छात्र-छात्राएँ इसकी मदद से प्रोजेक्ट बनाने आदि का काम कर रहे हैं, पर आने वाले समय में छात्रों को बस्ते के बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। उनकी सारी पुस्तकें और पाठ्यसामग्री कंप्यूटर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। अब वह समय भी दूर नहीं जब शिक्षक भी कंप्यूटर ही होगा। वह छात्रों को निर्देश देकर विभिन्न विषयों की पढ़ाई करवाएगा। आज भी छात्र अपनी मोटी-मोटी पुस्तकें पी.डी.एफ.फार्म में करके कंप्यूटर से पढ़ाई कर रहे हैं।

बैंकों में कंप्यूटर – कंप्यूटर बैंकिंग क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। अब कंप्यूटर के कारण क्लर्कों को न हाथ से काम करना पड़ रहा है और न फाइलें और लेजर सँभालने का झंझट रहा। सभी ग्राहकों के खाते अब कंप्यूटर की फाइलों में सिमट आए हैं। कंप्यूटर में न इनके खोने का डर है और न चूहों के काटने का। इसके अलावा एक कंप्यूटर कई-कई क्लर्कों का काम बिना थके करता है। कंप्यूटर न तो हड़ताल करता है और वेतन बढ़ाने के लिए कहता है। यह ऐसा यंत्र है जो बिना गलती किए अधिकाधिक कार्य कम से कम समय में पूरा कर देता है।

विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर – कंप्यूटर अपनी उपयोगिता के कारण हर सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों में प्रयोग किया जाने लगा है। आज इसे वैज्ञानिक, आर्थिक युद्ध, ज्योतिष, मौसम विभाग, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका प्रयोग बिल बनाने, कर्मचारियों के वेतन, पी.एफ. का हिसाब रखने, खातों के संचालन आदि में खूब प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार रेलवे, वायुयान, समुद्री जहाजों के संचालन के लिए भी कंप्यूटर की मदद ली जा रही है।

व्यक्तिगत उपयोग – आज कंप्यूटर का व्यक्तिगत उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। छात्र इसका उपयोग पढ़ाई के लिए कर रहे हैं, तो चित्रकार और कलाकार इसका प्रयोग अपनी कला को निखारने के लिए कर रहे हैं। गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग और संकलन का कार्य कंप्यूटर से बखूबी किया जा रहा है। कंप्यूटर से हानियाँ-कंप्यूटर का एक पक्ष जितना उजला है, दूसरा पक्ष उतना ही श्याम भी है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ की उक्ति इस पर पूरी तरह लागू होती है। इसका अधिक उपयोग मोटापा बढ़ाता है। इस पर ज़्यादा देर काम करना आँख और कमर के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा इस पर सारी गणनाएँ सरलता से हो जाने के कारण अब मौखिक दक्षता और याद करने की क्षमता में कमी आने लगी है।

उपसंहार – कंप्यूटर अद्भुत तथा अत्यंत उपयोगी यंत्र है, पर इसका अधिक प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसका प्रयोग व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाता है। इसका आवश्यकतानुसार सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए।

पत्र लेखन

नियोजित कार्या


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ಬರದ ಬರೆ

  ಮೊನ್ನೆ ಶನಿವಾರ ಅರ್ಧ ದಿನದ ಶಾಲೆ ಮುಗಿಸಿ,  ಬಸ್ಸತ್ತಿ  ಊರ ಕಡೆಗೆ ಹೊರಟೆ. ನನ್ನೂರಿಗೆ ಹೋಗದೆಯು ತುಂಬಾ ದಿನಗಳಾಗಿತ್ತು. ಹೋಗುವ ದಾರಿ ಮಧ್ಯ ಮಧ್ಯದಲ್ಲಿ ಅಲ್ಲಲ್ಲಿ ಬ...